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नहीं चलेगी बिल्डर और अथॉरिटी की मनमानी- UP High court Shows the way to all

Postby naveenarichwal » Sun Nov 24, 2013 7:52 pm

http://navbharattimes.indiatimes.com/de ... 170504.cms

एनबीटी न्यूज ॥ ट्रांस हिंडन
बिल्डर और डिवेलपमेंट अथॉरिटी मिलकर अब किसी भी सैंगशन्ड प्लान में चेंज नहीं कर सकते हैं। इसके लिए अब आवंटी की सहमति भी जरूरी होगी। कई बार देखने में आया है कि बिल्डर डिवेलपमेंट अथॉरिटी से कुछ प्लान सैंगशन कराते हैं और मौके पर निर्माण किसी और तरह से करते हैं जिससे आम आदमी ठगा जाता है। इस तरह की चीजों पर अंकुश लगाने के लिए अब कोर्ट की ओर से निर्देश जारी कर दिए गए हैं और आवंटी की सहमति जरूरी कर दी गई है।
चार सोसायटी के रेजिडेंट्स ने डाली थी रिट
हाई कोर्ट के जज सुनील अंबावानी तथा भारत भूषण की बेंच ने 14 नवंबर को ये आदेश दिया है। बेंच की ओर से डिप्टी रजिस्ट्रार मेरठ तथा अन्य सक्षम अधिकारियों को एक्ट लागू करने के लिए दिशा निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। इसमें प्रमोटर तथा बिल्डर को अपार्टमेंट ओनर के संगठन बनाने, डिक्लेयरेशन जमा कराने, कंपलीशन सर्टिफिकेट तथा डीड ऑफ अपार्टमेंट समय पर दिए जाने पर जोर दिया गया है। ऐसा नहीं होने पर प्रमोटरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मालूम हो कि इलाहाबाद हाइ कोर्ट में टीएचए की विभिन्न चार सोसायटियों के रेजिडेंट्स ने रिट डाल रखी थी। इन पर सुनवाई करते हुए हाइ कोर्ट ने इन चारों पर एक साथ यह निर्णय दिया है।
केस 1 : डिजाइनआर्क इन्फ्रास्चर प्राइवेट लिमिटेड के लिए जीडीए ने कुछ समय पहले ऑर्डर दिया था कि वह सोसायटी को हैंडओवर कर दे और सिक्युरिटी डिपॉजिट के पैसे आरडब्ल्यूए को वापस कर दे। इस बात को बिल्डर ने चैलेंज कर दिया कि आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष और सेक्रेटरी उनकी सोसायटी में फ्लैट के मालिक नहीं हैं। यहां पर उनकी पत्नी के नाम पर फ्लैट है। हाइ कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा है कि अगर ओनर की सहमति से वे आरडब्ल्यूए में शामिल हो रहे हैं और किसी पद पर काम कर रहे हैं तो बिल्डर को प्रॉब्लम नहीं होना चाहिए। ओनर के अलावा भी दूसरे लोग ओनर की सहमति से आ सकते हैं।
केस 2: इंदिरापुरम में सन टावर शिप्रा इस्टेट लिमिटेड का प्रोजेक्ट है। इसके लिए 8 साल से कोर्ट में रिट पड़ी हुई है। यहां इतने सालों से कोई न कोई काम चलता रहता है। मगर अब तक रेजिडेंट्स के लिए सुविधाएं नहीं दी गई है। यहां 5000 फ्लैट हैं मगर एक हॉल तक नहीं मिला है। रेजिडेंट्स ने रिट में कहा कि बिल्डर को जो एफएआर मिला वो निर्माण करता जा रहा है। उसको पहले यहां रह रहे लोगों को सुविधा देेनी चाहिए थी फिर निर्माण करवाना चाहिए। इस वजह से अब यहां पर बिना अलॉटी की सहमति के कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि यहां नया निर्माण न किया जाए। जो भी टावर का काम हो उस पर सबकी सहमति हो।
केस 3: अभिनव जैन ने राजनगर एक्सटेंशन में प्रॉपर्टी खरीदी। उनको जब बिल्डर की ओर से वहां पर फ्लैट दिया गया तो बड़ा सा पार्क दिखाया गया था। कुछ समय के बाद नक्शा बदल दिया गया। उसमें पार्क छोटा हो गया और टावरों की संख्या बढ़ा दी गई। पूरे कैंपस में पहले 40 टावर थे वो दूसरे नक्शे में बढ़कर 57 हो गए। अभिनव जैन ने रिट डालकर बिल्डर से पैसे मांगे। कोर्ट ने कहा कि कोई बिल्डर ऐसा नहीं कर सकता। उसने रेजिडेंट् को जो दिखाया है उसे उसी हिसाब से वहां पर काम करना चाहिए। जब कोई निवेशक या रेजिडेंट किसी प्रोजेक्ट में पैसा लगता है तो वह उसका पार्टनर हो जाता है। यदि बिल्डर को किसी तरह का परिवर्तन करना है तो सभी को बुलाया जाए और उनसे उस पर सहमति ली जाए उसके बाद प्लान चेंज किया जाए। केवल बिल्डर और डिवेलपमेंट अथॉरिटी मिलकर सैंक्शन प्लान को नहीं बदल सकते।
केस 4 : ऑलिव काउंटी आरडब्ल्यूए ने हाई कोर्ट में रिट डाली थी जिसमें कहा गया था कि उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो रहा है। इस पर 3 महीने पहले हाई कोर्ट ने ऑर्डर दिया था कि आरडब्ल्यूए का रजिस्ट्रेशन कर दिया जाए। हाई कोर्ट के ऑर्डर के बाद भी डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस मेरठ में रजिस्ट्रेशन नहीं हो रहा था। उनका कहना था कि पहले कंपलीशन सर्टिफिकेट लाएं। हाई कोर्ट ने कहा कि कंपलीशन सर्टिफिकेट लेना बिल्डर का काम है न की आरडब्ल्यू का। कंपलीशन नहीं लेता है तो उसके खिलाफ पनिशमेंट का कानून लागू होगा। यदि कोई बिल्डर कंपलीशन सर्टिफिकेट लेकर आरडब्ल्यूए को नहीं देगा तो उसके लिए 3 साल की सजा का प्रावधान है।
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Re: नहीं चलेगी बिल्डर और अथॉरिटी की मनमानी- UP High court Shows the way to all

Postby naveenarichwal » Sun Nov 24, 2013 8:41 pm

Filling Public Interest Litigation Or CWP should be the Objective of GFWA.

Why are they not active in this field when almost 1000 members are in their association.
Also when so much material is available to them from members.
Of course The issues limited to the projects should be taken care by the respective by the residents of that Project but why not take interest in issues that affect all. namely DGTCP Complicity and inaction despite repeated complaints from various projects, Super area , etc.
I think EDC & Enhanced EDC is not the end of world for GFWA.
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Re: नहीं चलेगी बिल्डर और अथॉरिटी की मनमानी- UP High court Shows the way to all

Postby naveenarichwal » Sun Nov 24, 2013 8:53 pm

Others being Common area , registration without OC, etc
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Re: नहीं चलेगी बिल्डर और अथॉरिटी की मनमानी- UP High court Shows the way to all

Postby dheerajjain » Sun Nov 24, 2013 10:04 pm

That is a wonderful order by High Court of Uttar Pradesh ! Regarding GFWA, it used to very active in 2011 when we had massive protests, then filed writ in High Court, submitted thousands of complaints related to all builders etc. But, after that, it seems to be on downward trajectory. Just for information, I am no longer part of GFWA Working Committee or Executive Committee. But, I continue to be GFWA member.
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